आकर मेरी मजार पर तूने जो मुस्करा.......... मुक्तक और रुबाईयाँ

आकर मेरी मजार पर तूने जो मुस्करा...
  (1)
कुछ कान भी कमजोर हैं  बीनाई भी कम है
सोजिश है जिगर पर, मेरी आंतों में वरम है
पूछा   कि  मुझे  और  सताओगे  कहां  तक
बोले कि  जहां तक  तेरी  आवाज में दम है।
      -रामावतार त्यागी
  (2)
 आकर    मेरी  मजार  पर  तूने  जो   मुस्करा  दिया,
बिजली  सी  चमक  उठी,  सारा  कफन  जला दिया
चैन    से   सोया  था   मैं   ओढ़े   कफन   मजार  में
यहां भी आ गये सताने को किसने पता बता दिया।
  (3)
 कभी  मुझको साथ लेके,  कभी  मेरे साथ चलके
 वो  बदल  गये अचानक मेरी जिन्दगी बदल के
हुए  जिस पे मेहराबां वो, कोई खुशनसीब होगा
मेरी हसरतें तो निकली मेरे आसुओं में ढलके।
-एहसान दानिश
  (4)
 नजर उस हुस्न पर ठहरे तो आखिर किस तरह ठहरे
कभी वो फूल बन जाये, कभी रूखसार हो जाये चेहरा
चला  जाता  हूं  हंसता  खेलता   मौजे-हवादिस*   से
  अगर  आसानियां   हों,  जिन्दगी   दुश्वार  हो  जाये। 
-असगर गोडवीं
  (5)
अगर  तलाश  करूं  तो  मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा
तुम्हे  जरूर    कोई   चाहतों   से   देखेगा
मगर  वो आंख  हमारी कहां  से लायेगा।
-बशीर मेरठी
  (6)
रेखा   खींची   चित्र  बनाया चित्रों  को आकार  दे  दिया

साथ  हंसी  दो  प्यारी  आंखे सपनों  का संसार दे दिया
अपने  और  पराये पन  की  सीधी-सच्ची यही कसोटी
जिसे नयन अपना कह देते, उसे ह्दय उपहार दे दिया
-सरस्वती दीपक
*दुर्घटनाओं का शहर
संकलन-संजय कुमार गर्ग 

1 टिप्पणी :

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!