शुक्र देव का कैसे मनायें!


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शुक्र देव
महाभारत के अनुसार शुक्राचार्य (शुक्र) दानवों के पुरोहित हैं, ये योग के आचार्य हैं। इन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या करके मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी, इसी के बल पर ये युद्ध में मारे गये दानवों को जीवित कर देते थे। भगवान शिव ने इन्हें धन का अध्यक्ष भी बना दिया, इसी कारण शुक्राचार्य इस लोक व परलोक की सारी सम्पत्तियों के स्वामी बन गये। ब्रह्मा जी की प्रेरणा से शुक्राचार्य ग्रह बनकर तीनों लोकों का कल्याण करने लगे। मत्स्य पुराण के अनुसार इनका वर्ण श्वेत है, इनका वाहन रथ है, जिसमें अग्नि के समाान आठ घोड़े जुते रहते हैं। शुक्र जातक में स्वास्थ्य, आकर्षक दिखाने की भावना, वाहन सुख, कविता, रोमांस, स्त्री मित्र, सोने का संग्रह, शानदार घर, भोग विलास की वस्तुये, मैथुन, नाच गाना, रसिकता, सुन्दरता, फिल्म, अभिनय, सुन्दर स्त्री, सौन्दर्य प्रसाधन व वसंत ऋतु आदि का प्रतीक हैं। ये जातक में पापी या नीच के होने पर गुप्त रोग, खुजली, मधुमेह, बोलने के दोष, नशे की आदत, पत्नि से कलह, वाहन दुर्घटना, बाॅझपन, बाजारू स्त्रियों से सम्पर्क, शरीर में स्त्रियोचित हारमोन्स की अधिकता आदि अवगुण भी देते हैं।
कब शुभ होते हैं- 
*वृष, मिथुन, तुला, मकर, कुंभ, मीन राशियों में शुक्र शुभ हैं, कर्क, सिंह, कन्या, राशियों में मध्यम और मेष, वृश्चिक, धनु में अशुभ होते हैं।
*कुण्डली में सूर्य के साथ या बिलकुल पीछे हो तो कमजोर होते हैं।
*गुरू के साथ हो तो शुक्र अशांत होते हैं।
*शनि के कमजोर होने से शुक्र के सुख में कमी आती है। शनि के बलि होने पर शुक्र के शुभ फल बढ़ते हैं।
*शुक्र के साथ राहु या मंगल हो तो विवाहित जीवन में बाधा आती है।
*शुक्र-चन्द्र के साथ हों तो माता को कष्ट होता है।
*शुक्र-गुरू के साथ हों तो घर की स्त्रियों में आपस में तनाव रहता है।
लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार- 
 अंगूठे के दूसरे पर्व के नीचे आयु रेखा से घिरा हुआ जो स्थान होता है उसे शुक्र पर्वत कहते हैं। जिन हाथों में शुक्र पर्वत सामान्य उभार लिये हुए हो और आड़ी-तिरछी रेखाओं द्वारा न काटा गया हो, वह श्रेष्ठ माना जाता है। उस जातक में उपरोक्त वर्णित गुण पाये जाते हैं। जिन हाथों में शुक्र पर्वत ज्यादा उभार लिये होता है तथा आड़ी-तिरछी रेखाओं द्वारा काटा जाता है वो व्यक्ति भोगी व विपरित सेक्स के प्रति ललायित होते हैं तथा उन्हें प्रेम संबंधों में बदनामी भी उठानी पड़ सकती है, यदि किसी हाथ में शुक्र पर्वत का अभाव होता है तो वह व्यक्ति साधु-संन्यासी की तरह होता है, गृहस्थ जीवन में उनकी रूचि ना के बराबर होती है।
लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
कैसे मनाये शुक्र देव को सरल उपाय- 
1-शुक्र लक्ष्मी का रूप हैं, पराई स्त्री, कन्या के प्रति नजरें साफ रखें।
2-अगरबत्ती, इत्र, कपूर का दान करें व स्वयं भी इनका प्रयोग करें।
3-गले में चांदी की चेन पहनें।
4-तिजोरी या लाॅकर में चांदी के साथ चावल रखें।
5-सफेद वस्त्रों का कम से कम शुक्रवार को अवश्य पहनें, व चांदी के बर्तन में दही खायें।
6-दही, शहद, बूरा, दूध आदि चीजों का दान करें।
7-रेशमी वस्त्र किसी गरीब कन्या का दें।
8-पत्नि के अलावा किसी और से संबंध न बनाये।
9-घर में पुराने बेकार कपड़े, रददी, टूटे जूते आदि इकट्ठा न होने दें।
10-यदि शुक्र 6, 8, 12 वे भावों में या कमजोर राशियों में हो तो घर की नकदी-जेवर आदि को पूरी तरह से पत्नि या किसी स्त्री को न सौंपे।
लेखक-संजय कुमार गर्ग  sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
11-शुक्रवार का व्रत रखें।
12-शुक्र का रत्न हीरा है यदि इसे न खरीद सकें तो अमेरिकन डायमंड, ओपल, या मोती पहनें। हीरा वृष, तुला, मकर, कुंभ लग्न वालों के लिये शुभ है।
13-मेष, वृश्चिक, धनु, मीन, लग्न वालों के लिये हीरा पहनना उचित नहीं है।
14--"सूर्य-ग्रह" से संबंधित  सामान्य उपाय करें।

विशेष-उपरोक्त उपायों में से एकाधिक उपाय करने से शुक्र देव प्रसन्न होते हैं, यदि समस्या गंभीर हो तो किसी विद्धान व अनुभवी ज्योतिषी से संपर्क करना चाहिये।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग (लेखाधिन पुस्तक "नवग्रह रहस्य" से)
 (चित्र गूगल-इमेज से साभार!) 

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